वायरस क्या हैं?

वायरस सूक्ष्म जीव हैं जो पृथ्वी पर लगभग हर जगह मौजूद हैं। वे जानवरों, पौधों, कवक और यहां तक ​​कि बैक्टीरिया को संक्रमित कर सकते हैं। पृथ्वी पर लगभग हर पारिस्थितिकी तंत्र में वायरस होते हैं। सेल में प्रवेश करने से पहले, वायरस एक ऐसे रूप में मौजूद होते हैं, जिसे विषाणु के रूप में जाना जाता है। इस चरण के दौरान, वे लगभग एक-सौवें एक जीवाणु के आकार के होते हैं और दो या तीन अलग-अलग भागों से मिलकर होते हैं:

विषाणु (Virus) एक प्रकार के संक्रमक घटक होते हैं जो दूसरे जीवों के जीवित कोशिकाओं में पनपते हैं।

ये हर प्रकार के प्राणियों (यहाँ तक कि बैक्टीरिया को भी) प्रभावित करने में सक्षम हैं। यह सुक्ष्म परजीवी   होते हैं जिनका आकार बैक्टीरिया से भी छोटा होता है। यह खुद से पनपने  में अक्षम हैं और मेजबान शरीर के बाहर पनपते रहते हैं।

विषाणुओं के कारण कई भयानक रोगों का संचारण हुआ है। 2009 में भारत में स्वाइन फ्लू एवं 2014 में अफ़्रीकी देशों में इबोला नामक बीमारी फैला था, इन्ही की देन थी जिससे कई बहुमूल्य जानें गयीं।

दूसरी तरफ विषाणुओं के कारण कई महत्वपूर्ण शोध कार्य जारी हैं। कोशिकाओं से जुड़ी हुई कई प्रक्रियाएं जैसे प्रोटीन संश्लेषण की व्यवस्था, विषाणुओं की कोशिकीय प्रक्रिया आदि के बारे में जानने में सहायता मिलती है।

  • आनुवंशिक सामग्री, या तो डीएनए या आरएनए
  • एक प्रोटीन कोट, या कैप्सिड, जो आनुवंशिक जानकारी की सुरक्षा करता है
  • एक लिपिड लिफाफा कभी-कभी प्रोटीन कोट के आसपास मौजूद होता है जब वायरस कोशिका के बाहर होता है

वायरस में राइबोसोम नहीं होता है, इसलिए वे प्रोटीन नहीं बना सकते हैं। यह उन्हें अपने मेजबान पर पूरी तरह से निर्भर करता है। वे एकमात्र प्रकार के सूक्ष्मजीव हैं जो एक मेजबान सेल के बिना पुन: पेश नहीं कर सकते हैं। होस्ट सेल से संपर्क करने के बाद, एक वायरस आनुवंशिक सामग्री को होस्ट में सम्मिलित करेगा और उस होस्ट के कार्यों को संभाल लेगा। कोशिका को संक्रमित करने के बाद, वायरस पुन: पेश करना जारी रखता है, लेकिन यह सामान्य सेलुलर उत्पादों के बजाय अधिक वायरल प्रोटीन और आनुवंशिक सामग्री का उत्पादन करता है। यह इस प्रक्रिया है जो वायरस परजीवी के वर्गीकरण को अर्जित करता है। वायरस के अलग-अलग आकार और आकार होते हैं, और उन्हें उनके आकार द्वारा वर्गीकृत किया जा सकता है। ये हो सकते हैं:

  • पेचदार: तंबाकू के मोज़ेक वायरस का एक हेलिक्स आकार होता है।
  • इकोसाहेड्रल, निकट-गोलाकार वायरस: अधिकांश पशु वायरस इस तरह हैं।
  • लिफाफा: कुछ वायरस कोशिका झिल्ली के एक संशोधित खंड के साथ खुद को कवर करते हैं, एक सुरक्षात्मक लिपिड लिफाफा बनाते हैं। इनमें इन्फ्लूएंजा वायरस और एचआईवी शामिल हैं।

अन्य आकृतियाँ संभव हैं, जिनमें गैरमानक आकृतियाँ शामिल हैं जो पेचदार और इकोसाहेड्रल दोनों रूपों को जोड़ती हैं।

वायरस  की खोज 

सन्न 1886 में अडोल्फ मेयर नामक जर्मन रसायनज्ञ  ने विषाणु की खोज की थी। इन्हें इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप के द्वारा ही देखा जा सकता है।

1886 से पहले विषाणु के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी। विषाणु से होने वाले रोगों की रोकथाम भी काफी  मुश्किल थी।

वायरस  की संरचना 

इनका आकार बैक्टीरिया के से 50 गुणा कम होता है। मीसल विषाणु 220 नैनोमीटर का होता है । हेपेटाइटिस विषाणु 40 नैनोमीटर का होता है। पोलियो का विषाणु 30 नैनोमीटर का होता है।

विषाणु पूरी तरह से जीवित प्राणी नहीं माने जा सकते। एक तरफ उनके अंदर वो सभी चीजें पायीं जाती हैं जोकि एक जीवित प्राणी में होने चाहिए जैसे कि न्यूक्लेइक एसिड, डीएनए, आरएनए आदि। दूसरी तरफ वे नुक्लेइक एसिड में पाए जाने वाले जानकारियों के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करने में अक्षम हैं।

विषाणु उन परजीवी प्राणियों में आते हैं जो मेजबान कोशिकाओं  के अंदर अपनी प्रतियांबनाते हैं। मेजबान कोशिकाओं के बाहर विषाणु अपना प्रजनन नहीं कर सकते क्योंकि उनके अंदर वह जटिल तंत्र  नहीं पाया जाता जोकि कोशिकाओं के अंदर होता है।

मेजबान के कोशिका तंत्रो में पाए जाने वाले डीएनए कि मदद से विषाणु अपना आरएनए बना लेते हैं, इस प्रक्रिया को प्रतिलेखन (transcription) कहा जाता है एवं आरएनए में दिए गए संकेतों के हिसाब से प्रोटीन बना लेते हैं जिसे अनुवादन प्रक्रिया कहा जाता है।

जब विषाणु पूरी तरह से एकत्रित होके संक्रमण फैलाने योग्य हो जाते हैं, उनको वायरन कहा जाता है। इसके संरचना में नुक्लेइक एसिड पाया जाता है जोकि प्रोटीन से घिरा होता है, इसको कैप्सिड कहा जाता है जोकि एसिड को न्यूक्लिअसिस नाम के एंजाइम से नष्ट होने में बचाते हैं। कुछ विषाणुओं के पास सुरक्षा की दूसरी परत भी होती है जो मेजबान के कोशिका झिल्ली का भाग होता है।

वायरस  का कार्य

सूक्ष्मजीवकी के अनुसार, विषाणु अपना डीएनए या आरएनए जीन मेजबान कोशिकाओं में  प्रत्यारोपित (implant) करने का कार्य करते हैं ताकि वो जीन मेजबान कोशिकाओं द्वारा प्रतिलेखित या अनुवादित हो सकें।

पहले तो विषाणु मेजबान के शरीर में जाने का रास्ता ढूंढते हैं। खुले हुए घाव या श्वशन मार्ग शरीर में जाने के लिए इनके लिए द्वार का काम करते हैं। कभी कभी कीटाणुओं के द्वारा भी विषाणु शरीरों में प्रवेश लेते हैं। जब कीटाणु इंसानों को काटते हैं, तब वे विषाणु कीटाणुओं के लार के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इन विषाणुओं के द्वारा डेंगू का बुखार और पीला बुखार चढ़ता है।

शरीर में प्रवेश लेने के बाद विषाणु अपने आप को कोशिकाओं के सतह से संलग्न कर लेते हैं। कोशिका के सतहों पर अपने आप को बाँध कर वे ऐसा कर पाते हैं। अलग अलग विषाणु एक सतह पर बंध जाते हैं और एक ही विषाणु अलग अलग सतहों पर भी बंध सकते हैं। इसके बाद विषाणु कोशिकाओं के झिल्ली की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं। उदाहरण स्वरूप एचआईवी का विषाणु झिल्ली में घुल जाता है एवं इन्फ्लुएंजा का विषाणु कोशिकाओं द्वारा निगल लिया जाता है।

वायरस  के प्रकार : परपोषी प्रकृति के अनुसार विषाणु मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-

  1. पादप विषाणु (Plant virus): इनमें न्यूक्लिक अम्ल आर.एन. ए. (RNA) होता है। जैसे- टी.एम.वी.(T.M.V)
  2. जन्तु विषाणु (Animal virus): इनमें न्यूक्लिक अम्ल सामान्यतः डी.एन.ए. (DNA) और कभी-कभी आर.एन.ए (RNA) होता है। जैसे- इनफ्लूएन्जा वायरस, मम्पस वायरस आदि।
  3. वैक्ट्रियोफेज (Bacteriophage) या जीवाणुभोजी: ये केवल जीवाणुओं (Bacteria) के ऊपर आश्रित रहते हैं। इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में डी.एन.ए. (DNA) पाया जाता है। जैसे-टी-2 फेज (T-2 Phage)।

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