ब्लडप्रेशर (रक्तचाप ) क्या होता है ?

(रक्तचाप ) क्या होता है ?

(रक्तचाप ) क्या होता है ?

ब्लडप्रेशर

रक्तचाप रक्त वाहिका की दीवारों के खिलाफ रक्त के बल को मापने का उपाय है ह्रदय रक्त  रक्त  को धमिनियो  में पम्प  करता  है जो  पूरे शरीर में  रक्त ले जाता  है.  उच्च  रक्तचाप  खतरनाक  है  क्यूकि यह ह्रदय  को  शरीर  से  रक्त  पम्प  करने  के लिए  कठिन  काम  करता  है  और  धमिनियो स्ट्रोक गुर्दे की  बीमारी  और  ह्रदय  की  विफलता के   विकास  में  योगदान देता  है. हमारी रक्त वाहिनियो  पर   पड़ने  वाले  खून  के  दबाव  को  ब्लडप्रेशर कहते  है इसे  मापने  के  लिए  एक  मशीन  का  उपयोग  करते  है जिसे स्फिग्नोमैनोमीटर  कहते है

आदर्श  ब्लडप्रेशर (सामान्य रक्तचाप)  120/80  माना  जाता  है  इसमे  पहले नंबर  को   सिस्टोलिक  ब्लडप्रेशर  कहा  जाता  है  क्योकि यह  दिल धडकने  के  समय  ब्लडप्रेशर  को  दिखाता  है .दूसरी संख्या को डायस्टोलिक  ब्लडप्रेशर कहते  है क्योकि  ह्रदय  के  दबाव तनाव मुक्त  रहने  के  समय के ब्लडप्रेशर की  सूचना  देता  है

ब्लडप्रेशर के प्रकार

1-हाई ब्लडप्रेशर (उच्च रक्त चाप)

2-लो ब्लडप्रेशर

हाई ब्लडप्रेशर

असमान्य रूप  से  उच्च  रक्तचाप  और  उच्च मनोवैज्ञानिक तनाव के संयोजन को उच्च रक्तचाप के रूप में जाना जाता है।इस  विकार  से पीड़ित इन रोगियों का रक्तचाप रक्तचाप 140 से अधिक 90 मिमी से अधिक होगा।  उच्च रक्तचाप का निदान रक्तचाप को मापकर किया जाता है। सिस्टोलिक दबाव पहले रीडिंग अर्थात होगा। एक दबाव जिससे हृदय शरीर के माध्यम से रक्त पंप करता है, और दूसरा रीड डायस्टोलिक दबाव होगा, जिसका अर्थ है कि एक दबाव जिस पर हृदय आराम  करता  है

हाई ब्लडप्रेशर  के  कारण

सामान्य और स्वस्थ व्यक्तियों में तीव्र तनाव और प्रतिकूल पर्यावरणीय कारक रक्तचाप बढ़ाने के मुख्य कारक हैं।प्रचलित स्थिति की बढ़ती दर को ज्यादातर जीवन शैली और आहार संबंधी कारकों जैसे कि निष्क्रिय आदतों, प्रसंस्कृत वसायुक्त खाद्य  पदार्थो  से  उच्च आहार सोडियम सामग्री, तंबाकू और शराब के उपयोग पर दोषी ठहराया जाता है।

हाई ब्लडप्रेशर के लक्षण

  • भयानक सरदर्द
  • थकान या भ्रम
  • बहुत घबराहट या चिंता होना
  • नज़रों की समस्या
  • छाती में दर्द
  • सांस लेने मे तकलीफ
  • अनियमित दिल की धड़कन
  • नाक से खून निकलना
  • मूत्र में खून आना

हाई ब्लडप्रेशर से  बचने  के  उपाय

नियमित व्यायाम करके:निष्क्रिय लोगों के मुकाबले सक्रिय लोगों को है हाई ब्लडप्रेशर होने का खतरा 20-50% तक कम होता है. ज़रूरी नहीं की इसके लिए आप जिम जाएं, सुबह टहलना ,योग, या घर के काम करके भी आप शारीरिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं.

नमक का सेवन कम करके: नमक हमारे शरीर में पानी को बनाए रखने में सहायक होता है. लेकिन अधिक नमक खाने से शरीर में जो ज्यादा पानी स्टोर होता है वो रक्त चाप को बढ़ा देता है.

इसलिए, यदि आप खाने में नमक कम लेते हैं तो आपको BP की समस्या होने की सम्भावना कम होती है.

धुम्रपान / शराब का सेवन ना करें या बहुत कम करें: अधिक शराब पीना आपका ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. बेहतर तो होगा कि आप शराब पिए ही नहीं, लेकिन अगर पीते भी हैं तो दिन-भर में 1-2 ड्रिंक से अधिक नहीं. इसी तरह यदि आप सिगरेट स्मोकिंग छोड़ पाएं तो ये भी आपका बीपी कम करने में मदद करेगा.

लो ब्लडप्रेशर

सामान्य तौर पर किसी भी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर 120/80 के स्तर पर होना नॉर्मल होता है और इसमें थोड़ा बहुत अंतर भी सामान्य होता है। लेकिन यदि इसका स्तर 90/60 या उससे भी कम है, तो इसे निम्न रक्तचाप या लो  ब्लडप्रेशर माना जाता  है

लो ब्लडप्रेशर का कारण

लो बीपी के कई कारण हो सकते हैं जैसे शरीर में पानी की कमी, दवाई का बुरा असर, सर्जरी या गंभीर चोट के कारण, जेनेटिक, स्ट्रेस, ड्रग्स, खाने से जुड़ी खराब आदतें, ज्यादा भूखा रहना आदि।  लो  ब्लड प्रेशर दिल की बीमारी की ओर भी इशारा करता है, क्योंकि खून का बहाव सीधे तौर पर दिल की पंपिंग की क्रिया पर निर्भर करता है। ऐसे में आर्टरी में किसी प्रकार की दिक्कत ब्लड पंप करने में दिक्कत पैदा कर सकती है, जो शरीर के अंगों तक पर्याप्त खून नहीं पहुंचने देती।

लो ब्लडप्रेशर  के  लक्षण

  • चक्कर आना
  • आंखों के सामने अंधेरा छाना
  • धुंधला दिखाई देना
  • उल्टी जैसा होना
  • थकान होना
  • ध्यान लगाने में परेशानी होना
  • हाथ-पैर ठंडे होना
  • चेहरा सफेद पड़ना
  • सांस लेने में दिक्कत होना
  • खाने में परेशानी होना

लो ब्लडप्रेशर  से  बचने  के  उपाय

चोकर युक्त आटा : गेहूं व चने के आटे को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई रोटी खूब चबा-चबाकर खाएं, आटे से चंदा न खाएं।

यह ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में बहुत मददगार होता है।

ब्राउन राइस  : भूरे चावल का इस्तेमाल करें, इसमें नमक, कोलेस्टरोल और चर्बी नाम केवल की होती है। यह हाई ब्लड प्रेशर रोगी के लिए बहुत लाभदायक भोजन है।और पढने के लिए यहाँ क्लिक करे >>> 

लहसुन : लहसुन में एलिसीन होता है, जो नाइट्रिक ऑक्साइड के उत्पादन को बढ़ाता है और मांसपेशियों को आराम पहुंचाता है ब्लडप्रेशर के डायलोस्टिक और सिस्टोलिक सिस्टम में भी राहत देता है। यही कारण है कि ब्लड प्रेशर के रोगियों को रोजाना खाली पेट एक लहसुन की कली खानी चाहिए।और पढने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करे  >>

आंवला : वैसे तो आंवला काफी बीमारियों में मदद करता है  लेकिन आंवला ब्लड प्रेशर के लिए भी बहुत राहत पहुंचाने वाला है। आंवला में विटामिन सी होता है। यह रक्त परिसंचरण को ठीक करता है और कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित रखता है।

 

गर्भावस्था
गर्भधारण के लगभग 8-10% मामलों में उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की समस्या वाली महिलाओं में प्राथमिक उच्च रक्तचाप पहले से मौजूद होता है। गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप पूर्व-एक्लंपशिया, का पहला संकेत हो सकता है जो कि गर्भावस्था की दूसरे आधे भाग की तथा प्रसव के कुछ हफ्तो बाद की गंभीर स्थिति है। पूर्व एक्लंपशिया के निदान में बढ़ा रक्तचाप तथा मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति शामिल है। पूर्व-एक्लंपशिया गर्भधारण के लगभग 5% मामलों में होता है और विश्व स्तर पर सभी मातृ मृत्यु के लगभग 16% मामलों के लिए जिम्मेदार होता है। पूर्व-एक्लंपशिया बच्चों की मृत्यु का भी खतरा दोगुना कर देता है।[11] आमतौर पर पूर्व-एक्लंपशिया का कोई लक्षण नहीं होता हैं और यह नियमित जांच से ही पता चलता है। जब पूर्व-एक्लंपशिया के लक्षण होते हैं तो उनमें सबसे आम सिरदर्द, दृश्यता संबंधी गड़बड़ी (अक्सर “चमकती रोशनी”), उल्टी, अधिजठर (पेट के ऊपरी-मध्य भाग में) दर्द और एडेमा (सूजन) हैं। पूर्व-एक्लंपशिया कभी-कभी जीवन के लिए एक खतरनाक स्थिति एक्लंपशिया तक पहुंच जाती है। एक्लंपशिया एक उच्च रक्तचाप से संबंधित आपात स्थिति है इसमें कई गंभीर जटिलताएं शामिल हैं। इन जटिलताओं में दृष्टि का खोना, मस्तिष्क में सूजन दौरे या कंपकपी, गुर्दे की विफलता, फेफड़े का एडेमा और एक या अधिक रक्त वाहिकाओं में खून का जमना (रक्त के थक्के का विकार) शामिल हैं।

शिशु और बच्चे
नवजात शिशुओं और युवा शिशुओं में बढ़त में कमी, दौरे, चिड़चिड़ापन, ऊर्जा में कमी और साँस लेने में कठिनाई को उच्च रक्तचाप के साथ जोड़ कर देखा जा सकता है। बड़े शिशुओं और बच्चों में, उच्च रक्तचाप, सिरदर्द, अस्पष्ट चिड़चिड़ापन, थकान, बढ़त में कमी धुंधली दृष्टि, नकसीर फूटना, और चेहरे का पक्षाघात हो सकता है।

 

प्राथमिक उच्च रक्तचाप

प्राथमिक (आवश्यक) उच्च रक्तचाप, उच्च रक्तचाप का सबसे आम रूप है, उच्च रक्तचाप के सभी मामलों में 90-95% यही होता है। लगभग सभी समकालीन समाजों में, उम्र बढ़ने के साथ रक्तचाप बढ़ता है तथा बाद के जीवन में उच्च रक्तचाप से ग्रस्त होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। जीन और पर्यावरणीय कारकों के एक जटिल मिलाप से उच्च रक्तचाप होता है। रक्तचाप पर हल्का प्रभाव डालने वाली कई आम जीनों की पहचान की गयी है साथ ही रक्तचाप पर अधिक प्रभाव डालने वाली कुछ दुर्लभ जीन भी पता चली हैं लेकिन उच्च रक्तचाप का आनुवंशिक आधार अभी भी बेहद कम समझा गया है। कई पर्यावरणीय कारक रक्तचाप को प्रभावित करते हैं। जीवन शैली से संबंधित कुछ कारक हैं जो रक्तचाप कम करते हैं जिनमें आहार में नमक की मात्रा कम करना, फल और कम वसा वाले उत्पादों को आहार में बढ़ाना (उच्च रक्तचाप को रोकने के लिये आहार संबंधी दृष्टिकोण (DASH आहार) शामिल हैं। व्यायाम, वजन घटाना और शराब का कम सेवन भी रक्तचाप कम करने में मदद करते हैं। अन्य कारकों जैसे तनाव, कैफीन की खपत, और विटामिन डी की कमी की संभावित भूमिका, कम स्पष्ट है। इंसुलिन प्रतिरोध, जो मोटापे में आम है और सिंड्रोम एक्स (या उपापचयी सिंड्रोम) का एक घटक है, भी उच्च रक्तचाप के लिए योगदान देने वाला माना जाता है। हाल के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि प्रारंभिक जीवन की घटनाएं (उदाहरण के लिए, जन्म के समय कम वजन, धूम्रपान करने वाली माँ तथा स्तनपान की कमी) आवश्यक उच्च-रक्तचाप के लिये जोखिम कारक होती हैं। हालांकि, इन जोखिमों को वयस्कों में उच्च रक्तचाप की समस्या से जोड़ने वाले तंत्र अस्पष्ट हैं।

द्वितीयक उच्च-रक्तचाप

द्वितीयक उच्च रक्तचाप किसी पहचाने जा सकने वाले कारण का परिणाम है। गुर्दे का रोग उच्च रक्तचाप के द्वितीयक कारणों में सबसे आम है। उच्च रक्तचाप, अंतःस्रावी स्थितियों जैसे कुशिंग सिन्ड्रोम, हाइपरथायराडिज्म (अतिगलग्रंथिता), हाइपोथायराडिज्म(अल्पगलग्रंथिता), एक्रोमिगेली, कॉन सिन्ड्रोम (अतिकायता) या हाइपरएल्डोस्टरोनिज्म (रक्त में एल्डोस्टरोन हार्मोन की अधिकता) तथा हाइपरपैराथायराइरॉडिज्म (अतिपरजीविता) या फियोक्रोमोसाइटोमा (एपाफ्राइन के अतिस्राव के कारण सतत उच्च रक्तचाप) के कारण भी हो सकता है।] द्वितीयक उच्च रक्तचाप के अन्य कारणों में मोटापा, नींद के समय अल्पश्वसन, गर्भावस्था, महाधमनी का निसंकुचन, अत्यधिक लिकोरिस खपत और कुछ पर्चे वाली दवाएं, हर्बल उपचार और अवैध दवाएं शामिल हैं।

पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)

धमनीय दाब को प्रभावित करने वाले कारकों को दर्शाता चित्र।

स्थापित मूलभूत उच्च रक्तचाप (प्राथमिक) वाले ज्यादातर लोगों में, कार्डियक आउटपुट सामान्य रहते हुये रक्त प्रवाह का बढ़ा हुआ प्रतिरोध (कुल परिधीय प्रतिरोध) उच्च दबाव के लिए जिम्मेदार होता है। इस बात के साक्ष्य है कि पूर्व-उच्चरक्तचाप या “सीमावर्ती उच्च रक्तचाप वाले कुछ युवा लोगों को उच्च कार्डियक आउटपुट, उच्च हृदय गति दर और सामान्य परिधीय प्रतिरोध होता है। इस स्थिति को हाइपरकाइनेटिक सीमावर्ती उच्च रक्तचाप कहा जाता है। इन व्यक्तियों के बाद के जीवन में स्थापित मूलभूत उच्च रक्तचाप के विशिष्ट लक्षणों का विकास हो जाता है क्योंकि उम्र के बढ़ने के साथ उनका कार्डियक आउटपुट गिर जाता है तथा परिधीय प्रतिरोध बढ़ जाता है। यह विवाद का विषय है कि यह पैटर्न उन सभी लोगों पर लागू होता है नहीं जिनमें अंततः उच्च रक्तचाप का विकास हो जाता है। स्थापित उच्च रक्तचाप में बढ़ा हुआ परिधीय प्रतिरोध मुख्य रूप से छोटी धमनियों और धमनिकाओं के संरचनात्मक संकुचन के कारण होता है। केशिकाओं की संख्या या घनत्व में कमी भी परिधीय प्रतिरोध में योगदान कर सकती है। उच्च रक्तचाप परिधीय नसों में लचीलेपन की कमी के साथ भी जुड़ा हुआ है,जो हृदय में रक्त की वापसी को बढ़ाने, हृदय प्रीलोड में वृद्धि कर सकता है और अंततः डायस्टोलिक असमान्यता का कारण बन सकता है। रक्त वाहिकाओं का सक्रिय संकुचन स्थापित मूलभूत उच्च रक्तचाप में भूमिका निभाता है या नहीं यह स्पष्ट नहीं है।

नाड़ी दबाव (सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप के बीच अंतर) उच्च रक्तचाप वाले बुजुर्गों में अक्सर बढ़ जाता है। इस स्थिति में ऐसा सिस्टोलिक दबाव हो सकता है जो कि असामान्य रूप से उच्च हो, लेकिन डायस्टोलिक दबाव सामान्य या कम हो सकता है। इस स्थिति को पृथक सिस्टोलिक रक्तचाप कहा जाता है। बुजुर्ग लोगों में उच्च रक्तचाप या पृथक सिस्टोलिक उच्च रक्तचाप के साथ उच्च नाड़ी दबाव को बढ़ी हुयी धमनीय कठोरता द्वारा समझा जा सकता है जो आम तौर पर उम्र बढ़ने के साथ जुडा हुआ है और उच्च रक्तचाप के द्वारा और बिगड़ सकता है।

उच्च रक्तचाप में धमनियों की प्रणाली के भीतर देखे गये प्रतिरोध में वृद्धि के लिये कई तंत्रों को प्रस्ताविक किया गया है। अधिकांश साक्ष्य इन कारणों में से एक या दोनों की ओर इशारा करते हैं:

  • गुर्दे द्वारा नमक और पानी से निपटने में अनियमितता, विशेष रूप से अंतः गुर्दा रेनिन – एंजियोटेनसिन प्रणाली की गड़बड़ियां।[42]
  • सहानुभूति तंत्रिका तंत्र की अनियमितताएं

ये तंत्र परस्पर अनन्य नहीं हैं और यह संभावना है कि मूलभूत उच्च रक्तचाप के ज्यादातर मामलों में दोनों कुछ हद तक जिम्मेदार हों। यह भी सुझाया गया है कि एंडोथेलियल असमान्यता (रक्त वाहिकाओं के अस्तर की शिथिलता) और संवहनी सूजन भी बढ़े हुये परिधीय प्रतिरोध और उच्च रक्तचाप में संवहनी क्षति के लिए योगदान कर सकते हैं।

 

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